एक प्रशन मन में उठता है की क्या एक बैंगन का बीज इतना जरूरी हो सकता है की उस पर बहस की जाए? लेकिन जब इस साधारण बैंगन के आगे बीटी लग जाए तो यह बहस लाज़मी हो जाती है। जी हां जेनेटिकली मोडिफाइड बीटीबैंगन जिसपर जयराम रमेश ने रोक तो लगा दी है पर न जाने क्यों जीएम् बीजो पर वे आये दिन कोई न कोई ब्यान जारी कर ही देते है। भारत में इन बीजो को लेके दो दमदार पक्ष तैयार हो गया हैं। एक जो जीएम बीजों की तारीफ़ करने से नहीं रुक रहा और दूसरा जो इस पद्धति के नुकसान गिनाये जा रहा है। मैं अपने बलोग में कोई भाषण नहीं देना चाहती बस कुछ सच हैं जो आपको बताना चाहती हूँ। आगे आप खुद समझदार हैं।
जीएम बीजों में बैसिलस थुरिन्जेसिस नामक जीवाणु का जीन डाला गया है जिसमेफसलो में लगने वाले कीड़ो से लड़ने की क्षमता है। इसी जीवाणु के नाम के कारण इसे बीटी कहा गया। इस प्रकार हम देखते हैं की जीएम फसलो में जीवनुओ और फसलो में जीन परिवर्तन कर दिया जाता है जिसके तहत किसी भी जीव के गुण किसी अन्य प्रजाति में डाले जा सकते है। बीटी बेंगान पहली खाद्य जीएम फसल है। यही कारण है की यह मुद्दा अधिक चर्चा में रहा।
एक अहम सवाल यह उठता है की आखिर यह मुद्दा इतनी बड़ी राजनीति का विषय क्यों बन गया तो उसका jwaab है व्यापार। बीटी का पेटंट अमरीकी कंपनी मोनसेंटो के पास है, यानी अगर भविष्य में जीएम बीजों का व्यापार बढ़ता है तो किसान को छोड़ कर बीज बनाने से लेके बीज बेचने तक हर किसी की चांदी होगी।
एक और बात चोकने वाली है की विश्व के अधिकाँश देशो ने जीएम बीजों के इस भूत को अपने देशो से दूर रखा है। जर्मनी, फ्रांस, आस्ट्रेलिया, हंगरी, जेसे राष्ट्रों ने भी जीएम बीजों को मान्यता नहीं दी है। आदमी कोई चूहा या सूअर नहीं जिस पर कोई भी चीज आजमा ली जाए। शायद अभी जीएम बीजों को और लम्बे परीक्षण से गुजरना चाहिए ताकि इससे जो आनुवंशिक बीमारियों का खतरा है वह पूरी तरह से समाप्त हो जाए। विज्ञान हमेशा वरदान नहीं होतो।
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