Sunday, March 7, 2010

एक और महिला दिवस


दुनिया का सबसे ज्वलंत विषय है 'औरत'। और आज तो सबसे अच्छा मोका है इस विषय पर बात करने का क्योकि आज महिला दिवस जो है। अगर देखा जाए तो औरत है ही क्या एक विषय से ज्यादा? आये दिन इसपर संगोष्ठिया होती है, सम्मलेन होते हैं, लेकिन परिस्थितियां वहीं की वहीं। इन संगोष्ठियों ने आखिर औरत को क्या दिया? एक लड़की के पैदा होने पर परिवार में मातम छा जाता है लेकिन क्यों हम भूल जाते है की इस परिवार को एक रूप देनेवाली भी एक औरत ही है। क्या आधिकारो की बात करे इस समाज में जहाँ एक औरत को जीने का भी आधिकार भी नहीं है।
इस वसुंधरा की आधारशिला, यही वो औरत है जिसकी याद में ताजमहल बनता है और यही नारी उस ताज को बनाने वाले मजदूर की बीवी है जो उसके हाथ काटने पर मजदूरी करके अपने पति का पेट पालती है। इसी के लिए रामायण का रण और महाभारत का संग्राम लड़ा गया और यही वह मदर टेरीसा है जिसने मजलूमों को सड़क से उठा के आपने गले लगाया। इससे ज्यादा शर्मनाक और क्या होगा की महिलायों को संसद में ३३% आरक्षण का मुद्दा उछलता तो हर महिला दिवस पर है पर पारित आज तक नहीं हो पाया। हम नहीं मांगते की की हमें पुरुषो से अधिक वरीयता चाहिए लेकिन अपने अस्तित्व को जिन्दा रखने का तो अधिकार हमें मिलना चाहिए। पिता के फेसलों से लेके पति के नाम तक सबकुछ हम पर थोप दिया जाता है। क्यों ना चाहते हुए भी एक औरत को त्याग, संस्कार और समाज के नाम पर पारिवारिक परम्पराओं की वाहक बना दिया जाता है? दुनिया का कोई भी रिश्ता इससे अछूता नहीं। २१वीं सदी के इस योवन काल में भी औरत अग्निकुंदों में फेंकी जाती है। कभी दहेज़ को लेके तो कभी औरत को उपभोग की वास्तु समझकर ये समाज सरेआम कई बार नारी को बदनाम करता आया है। और अगर इन सब दरिंदो से ये बच भी निकलती है तो स्वं इस अबला के पास अपना रोष प्रकट करने का केवल एक माध्यम बचता है , "आत्महत्या" ।
एक सवाल सामने आता है की क्या यही है अंतिम विकल्प? और यदि यही है अस्तित्व को बचने का आखिरी रास्ता, तो क्या आशा रखें इस समाज से इन्साफ की जिसने पग-पग पर नारी को सिर्फ मोत दी है।
इस सारे मंथन के बाद एक बात तो साफ़ हो गई की औरत बड़ा ही रोचक विषय है। और इसे विषय ही बने रहने देना चाहिए। क्योकि वरिष्ठ बुधिजीवों को कुछ तो विषय चाहिए जिसे वो बड़ेबड़े मंचों से बोल सके और औरत से बढ़िया और रोचक विषय और क्या होगा?

12 comments:

  1. "बुधिजीवों को कुछ तो विषय चाहिए जिसे वो बड़ेबड़े मंचों से बोल सके और औरत से बढ़िया और रोचक विषय और क्या होगा?" - सोचने और कुछ करने को विवश करते शब्द - हार्दिक शुभकामनाएं

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  2. सोचो...

    गर चाँद.. सूरज होना चाहे तो क्या होगा,

    हर फूल.. गुलाब होना चाहे तो क्या होगा,

    छा जायेगी हर सुं एक गहरी उदासी,

    औरत के जिस्म में भी गर मर्द होगा...

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  3. ब्लॉग जगत में स्वागत है...
    लेख में स्वस्थ चिंतन झलक रहा है.
    पत्रकारिता में सफ़लता की कामना है...
    वर्तनी की गलतियों से बचने की आवश्यकता है.
    शुभकामनाओं सहित.

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  4. Bahut khub. Anek shubhkamnaye.

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  5. ब्लॉग जगत में स्वागत है...

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  6. हंस कर जी कर सुमन बन,
    सपने कर आबाद|
    इस सुमन का मोल क्या ,
    मुरझाने के बाद ||

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  7. bas ek manish kee tippanee hee saarthak hai, aurat ko aurat hee rahane do. sabakee apanee apanee jagah hai.

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