Saturday, December 18, 2010

हम बिकते है, हमें खरीद लो...
एक जमाना था जब लोग समाज की सेवा कर  और सद्कर्म से नाम कमाया करते थे . लोग समाजसेवा और परोपकार को ही मानव का सबसे बड़ा धर्म मानते थे लेकिन आज की दुनिया में प्रसिद्धीके मायने बदल चुके है. नीलामी के इस दौर में आप खुद को कितनी भी कीमत पर बेच सकते है क्योकि आज जो दिखता है वही बिकता है. यानी जितना अधिक आप दिखायेगे उतनी ही ऊँची आपकी कीमत लग जायेगी. आज के रिअलिटी शो इस मानव नीलामी में सबसे आगे है. हत्यारे हो, चूर या डाकू हर किसी को यहाँ  अपना हुनर आजमाने का मौका मिलता है. राखी का इन्साफ हो या बिग बॉस , हर अदालत में सिर्फ अश्लीलता ही जीत रही है.
              आप जितना ज्यादा फूहड़ और अभद्र बोल  सकते है आपकी टी आर पी  उतनी ही बढ़ेगी.इस चक्कर में  राखी का इन्साफ हो या बिग बॉस, बस जिस शिद्दत से लोग अपने आप को बेच रहे है वह देखने लायक है... 

Sunday, March 28, 2010

आज पहली बार...


कुछ एसा हुआ है आज पहली बार ,

उसने छोड़ा है अकेला आज पहली बार।


मुझे ना हक़ मिला अपने सवाल रखने का,

न खुद जवाब दिया उसने आज पहली बार।


मेरी चाहत से लेके मेरी पूजा में था वो,

ईश्वर से विश्वास उठा है आज पहली बार।


उससे शुरू होकर उस पर ख़त्म होती थी जिन्दगी,

जीने पर अफ़सोस हुआ है आज पहली बार।


जिसने बनाया दुनिया की हर ख़ुशी के काबिल मुझे,

उसी ने मुझे इतना रुलाया आज पहली बार।

क्युकी उसने छोड़ा है अकेला आज पहली बार.....

Saturday, March 27, 2010

नावाकिफ है तू मेरी हैसियत से ,
अनजान है तू की मेरी बिसात क्या है?

तू क्या जानेगा मुझे ऐ बेखबर
तू आदमी है तेरी औकात क्या है?

तुने कब माना औरत को औरत,
वो तो सिर्फ तेरे बिस्तर की शोभा है।

काश तू जानता उसके अंदर की माँ
पर तू बेटा है तेरी जात क्या है?

Sunday, March 7, 2010

एक और महिला दिवस


दुनिया का सबसे ज्वलंत विषय है 'औरत'। और आज तो सबसे अच्छा मोका है इस विषय पर बात करने का क्योकि आज महिला दिवस जो है। अगर देखा जाए तो औरत है ही क्या एक विषय से ज्यादा? आये दिन इसपर संगोष्ठिया होती है, सम्मलेन होते हैं, लेकिन परिस्थितियां वहीं की वहीं। इन संगोष्ठियों ने आखिर औरत को क्या दिया? एक लड़की के पैदा होने पर परिवार में मातम छा जाता है लेकिन क्यों हम भूल जाते है की इस परिवार को एक रूप देनेवाली भी एक औरत ही है। क्या आधिकारो की बात करे इस समाज में जहाँ एक औरत को जीने का भी आधिकार भी नहीं है।
इस वसुंधरा की आधारशिला, यही वो औरत है जिसकी याद में ताजमहल बनता है और यही नारी उस ताज को बनाने वाले मजदूर की बीवी है जो उसके हाथ काटने पर मजदूरी करके अपने पति का पेट पालती है। इसी के लिए रामायण का रण और महाभारत का संग्राम लड़ा गया और यही वह मदर टेरीसा है जिसने मजलूमों को सड़क से उठा के आपने गले लगाया। इससे ज्यादा शर्मनाक और क्या होगा की महिलायों को संसद में ३३% आरक्षण का मुद्दा उछलता तो हर महिला दिवस पर है पर पारित आज तक नहीं हो पाया। हम नहीं मांगते की की हमें पुरुषो से अधिक वरीयता चाहिए लेकिन अपने अस्तित्व को जिन्दा रखने का तो अधिकार हमें मिलना चाहिए। पिता के फेसलों से लेके पति के नाम तक सबकुछ हम पर थोप दिया जाता है। क्यों ना चाहते हुए भी एक औरत को त्याग, संस्कार और समाज के नाम पर पारिवारिक परम्पराओं की वाहक बना दिया जाता है? दुनिया का कोई भी रिश्ता इससे अछूता नहीं। २१वीं सदी के इस योवन काल में भी औरत अग्निकुंदों में फेंकी जाती है। कभी दहेज़ को लेके तो कभी औरत को उपभोग की वास्तु समझकर ये समाज सरेआम कई बार नारी को बदनाम करता आया है। और अगर इन सब दरिंदो से ये बच भी निकलती है तो स्वं इस अबला के पास अपना रोष प्रकट करने का केवल एक माध्यम बचता है , "आत्महत्या" ।
एक सवाल सामने आता है की क्या यही है अंतिम विकल्प? और यदि यही है अस्तित्व को बचने का आखिरी रास्ता, तो क्या आशा रखें इस समाज से इन्साफ की जिसने पग-पग पर नारी को सिर्फ मोत दी है।
इस सारे मंथन के बाद एक बात तो साफ़ हो गई की औरत बड़ा ही रोचक विषय है। और इसे विषय ही बने रहने देना चाहिए। क्योकि वरिष्ठ बुधिजीवों को कुछ तो विषय चाहिए जिसे वो बड़ेबड़े मंचों से बोल सके और औरत से बढ़िया और रोचक विषय और क्या होगा?

Monday, February 22, 2010

बैंगन बना राजनीति का बकासुर

एक प्रशन मन में उठता है की क्या एक बैंगन का बीज इतना जरूरी हो सकता है की उस पर बहस की जाए? लेकिन जब इस साधारण बैंगन के आगे बीटी लग जाए तो यह बहस लाज़मी हो जाती है। जी हां जेनेटिकली मोडिफाइड बीटीबैंगन जिसपर जयराम रमेश ने रोक तो लगा दी है पर न जाने क्यों जीएम् बीजो पर वे आये दिन कोई न कोई ब्यान जारी कर ही देते है। भारत में इन बीजो को लेके दो दमदार पक्ष तैयार हो गया हैं। एक जो जीएम बीजों की तारीफ़ करने से नहीं रुक रहा और दूसरा जो इस पद्धति के नुकसान गिनाये जा रहा है। मैं अपने बलोग में कोई भाषण नहीं देना चाहती बस कुछ सच हैं जो आपको बताना चाहती हूँ। आगे आप खुद समझदार हैं।
जीएम बीजों में बैसिलस थुरिन्जेसिस नामक जीवाणु का जीन डाला गया है जिसमेफसलो में लगने वाले कीड़ो से लड़ने की क्षमता है। इसी जीवाणु के नाम के कारण इसे बीटी कहा गया। इस प्रकार हम देखते हैं की जीएम फसलो में जीवनुओ और फसलो में जीन परिवर्तन कर दिया जाता है जिसके तहत किसी भी जीव के गुण किसी अन्य प्रजाति में डाले जा सकते है। बीटी बेंगान पहली खाद्य जीएम फसल है। यही कारण है की यह मुद्दा अधिक चर्चा में रहा।
एक अहम सवाल यह उठता है की आखिर यह मुद्दा इतनी बड़ी राजनीति का विषय क्यों बन गया तो उसका jwaab है व्यापार। बीटी का पेटंट अमरीकी कंपनी मोनसेंटो के पास है, यानी अगर भविष्य में जीएम बीजों का व्यापार बढ़ता है तो किसान को छोड़ कर बीज बनाने से लेके बीज बेचने तक हर किसी की चांदी होगी।
एक और बात चोकने वाली है की विश्व के अधिकाँश देशो ने जीएम बीजों के इस भूत को अपने देशो से दूर रखा है। जर्मनी, फ्रांस, आस्ट्रेलिया, हंगरी, जेसे राष्ट्रों ने भी जीएम बीजों को मान्यता नहीं दी है। आदमी कोई चूहा या सूअर नहीं जिस पर कोई भी चीज आजमा ली जाए। शायद अभी जीएम बीजों को और लम्बे परीक्षण से गुजरना चाहिए ताकि इससे जो आनुवंशिक बीमारियों का खतरा है वह पूरी तरह से समाप्त हो जाए। विज्ञान हमेशा वरदान नहीं होतो।

Friday, February 19, 2010

ये केसी मजबूरी ?

मैं हाथ धो रही थी, और वो उसे मारे जा रहा थासोचा की कुछ कहू पर नजाने क्यों चुपचाप वापस गईलेकिन उसके रोने की आवाज आभी भी मेरे कानो में रही थी

वो एक साल का लड़का लाल गाल, सर पर टोपी और उस टोपी मैं लगी वो लम्बी डोरी जिसे वो घुमा घुमा के लोगो से पैसे मांग रहा था। ट्रेन के डिब्बे के बाथरूम के पास उसी की तरह का एक बड़ा लड़का उसे मारे जा रहा थाइस घटना को देख जाने क्यों मेरी आँखों में आंसू आगये, मैं दर्द से कराह रही थीपर कुछ नहीं कर पायी और सो गई। थोड़ी ही देर बाद वही लड़का उसी बड़े लड़के के साथ नाचता और खेल दिखता नजर आया।