Friday, September 21, 2012

मुझे दर्द हो रहा है...

मुझे दर्द हो रहा है, पर क्यों, ये मैं खुद नहीं जानती। बस एक अजीब सी टीस है दिल में। शायद, आज मैं समझ पा रही हूँ की औरत को कमज़ोर क्यों कहा जाता है। एक रिश्ता टूटने की कगार पर है, पर इस अकेले रिश्ते ने मानों मेरी जिन्दगी के अब तक के सारे रिश्ते बेमाने से कर दिए हों।  कल अपने कमरे में अकेले बैठी थी। कल पहली बार एसा नहीं हो रहा था, लेकिन न जाने क्यों कल क अकेलेपन ने मुझे पूरी तरह से तोड़ दिया हो। एसा लगा दीवारें मुझे देख कर हंस रही है। बिस्तर पर पड़ा तकिया भी अब मेरे आंसुओं से मनो भीगना न चाहता हो। एक अजीब से दलदल में फंस गई हूँ। क्या मैं स्वार्थी हूँ ??? क्या जिन्दगी से बहुत ज्यादा मांग रही थी मैं ??? या कुछ एसा मांग बैठी, जिसके मैं लायक ही नहीं थी?? आँसूं जेसे आँखों की कोरों में चुप कर कही बैठे है, और हर पल मुझसे दूर जाने के लिए आँखों से निकल कर बाहर आ जाते हैं। इस बहुत बड़े से शहर में, मैं अपने आप को बहुत छोटा महसूस कर रही हूँ। बहुत कुछ है मेरे पास कहने-सुनने को, पर कोई ऐसा नहीं जिसे कह सकूँ।