Friday, February 24, 2012

...पर मैं अकेली हूँ.



कल अचानक ऑफि से आते हुए कई दिनों बाद मुझे पूरा आसमान एक साथ दिखाई दिया... वैसे जाने अनजाने असमान तो मुझे दिख ही जाता था, लेकिन कल काफी दिनों बाद ये एहसास हुआ की कितने दिन हो गए मैं पूरा असमान नहीं देखा. आजकल तो असमान बस कुछ टुकड़ों में या कभी गलती से नजर ऊपर चली जाये तो ही दिखाई देता है. जब असमान की याद आई तो महसूस हुआ की रात में छत  पर बैठ कर चाँद  देखना मुझे कितना पसंद था. रोज शाम को जैसे  ही घर की बिजली जाती ( जब मैं छोटी थी तो घर की बिजली कई बार जाया करती थी.रात को तो हम बच्चे कई बार भगवन से प्रार्थना करते थे की बिजली चली जाये, ताकि पढाई से छुटकारा मिले  और हम खेल पाए. उस समय रात में तारों को देखना और छत पर बैठना मेरा शौक हुआ करता था.) मैं छत पर चली जाती. लेकिन अब कई दिन हो गए, मैंने पूरा खुला नीला आसमान ही नहीं देखा.
बड़े शहर की इन ऊँची-ऊँची इमारतों में जैसे कहीं  आसमान खो सा गया है. अब रात को चाँद में प्रेमी का चहरा दिखाई नहीं देता क्योकि अब चाँद  इन बड़ी इमारतों में से झांकता ही नहीं है. अब मुझे बच्चे गलियों में शोर मचाते हुए दिखाई ही नहीं देते. बहुत दिनों से कई सारी औरतों को अपने घरों के  चबूतरों पर बात करते हुए नहीं देखा, क्योकि अब घरो में चबूतरे ही नहीं है. अब तो फ्लेट है जिनमें नीचे  वाले  की जमीन है तो ऊपर वाले की छत है और बीच वाले का कुछ नहीं...
थोड़ा अजीब सा लगता है ये सब, जब सोचने बैठती हूँ तो, लेकिन में भी तो इसी फ्लैट में रह रही हूँ. जहाँ ना छत मेरी है ना जमीन. बस एक बिस्तर, चूला और कुछ पुरानी सी यादें. मैं मेट्रोसिटी  वाली बनाने की कोशिश तो कर रही हूँ, लेकिन अपना चाँद, पूरा आसमान और खुली छत बहुत  याद आती है अकेले में, और अजीब बात है की आज कल मैं भीड़ में भी अकली ही रहती हूँ....

8 comments:

  1. bilkul sahi kaha deepika apne aj ki duniya me insan ki yahi paristithi ho gyi hai woh nayi duniya ke rango me ramna b chahta hai pr apni mitti se judi yadon ko bhul bhi nhi paya hai.

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  2. कहाँ थे कहाँ आ गये?

    लेटा था छत पे,
    ताक रहा था आसमान को,
    एक तारा चलता दिखाई दिया,
    मुझे मेरा बचपन दिखाई दिया,
    नीचे उतरा,
    तेज़ रौशनी थी बल्ब की,
    बचपन उसी में खो गया,
    एहसास हुआ
    कि
    मैं बड़ा हो गया.

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    1. behad khubsoorat panktiyan hai vidhyarthi ji....

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  3. Jeewan chalney kaa naam Chaltey raho subho shaam...kay Rasta kat jaaye ga mitr......sachai hehi hai kee Naa koi saath hota hai naa hee koi chalta hai...Hum akeley hee aatey or Jaatey hai..Hamara hee brahm hota hai kee Voh hamarey saath hai Par hum
    akeylay hee hotey hai...

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  4. किसी को भावुक होते हुए देखना अच्छा लगता है। जब इंसान भावुक होता है तो मन की बात कहता है। अगर हकीकत की बात करें तो हर कोई तन्हा है। इसी कारण इतनी भीड़ है। अगर अपनापन हो तो एक कमरे में रहने वोले चार दोस्तों से भी हमें कोई तकलीफ नहीं होती। अपनेपन की कमी के कारण उपजा अकेलापन हमें दूर तक घसीटता है। इसकी पकड़ से कोई आजादी नहीं है। कोई रास्ता भी नहीं। सिवा इसको स्वीकार करने और आगे बढ़ने के। पुराने दोस्तों से बात करो शायद उनकी जिंदगी से निकला कोई सबक तुम्हारे काम आ जाए।

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    1. bhavnaye aaj bhi ye batati hai ki main jinda hu.. kyuki mera bhawok hona aaj bhi meri samvednao ke jinda hone ha dhyotak hi.. thanks virjesh.

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